।।सतर-ए-औरत के ताल्लुक से कुछ अहम मसाईल।।
मस्अला।। सतरे औरत हर हाल में वाजिब है। चाहे नमाज में हो या नमाज से बाहर, हर वक्त सतर-ए-औरत वाजिब है ।चाहे अकेला रूम में क्यों ना हो। किसी के सामने बिना सही जरूरत के, अकेले में भी सतर-ए-औरत खोल कर रखना जायज नहीं।।
[दर्रे-मुख़्तार, रद्दुल-मोहतार]
मस्अला।। :- अगर कोई शख्स इतना पतला कपड़ा कि जिससे बदन चमकता /झलकता हो। तो वह कपड़ा सतर-ए-औरत के लिए काफी नहीं। उस कपड़े को अगर पहनकर नमाज पढ़ी जाए तो नहीं होगी।
[आलमगीरी, फतवा-ए-राज़्विया जिल्द न:३,पेज़१ ]
मस्अला।। :- मर्द के लिए नाभि के नीचे से घुटनों के नीचे तक का बदन औरत है। यानी उसको छुपाना फर्ज है। नाभि छुपाने की जगह मैं दाखिल नहीं और घुटने उस में दाखिल हैं।
[दर्रे-मुख़्तार, रद्दुल-मोहतार]
मस्अला।। :- औरत के लिए सारा बदन औरत है। यानी उसको छुपाना फर्ज है, लेकिन मुंह यानी चेहरा, दोनों हाथों की हथेलियां, और दोनों पांव के तलवे औरत नहीं यानी नमाज़ की हालत में औरत का चेहरा ,दोनों हथेलियां और दोनों तलवे खुले होंगे तो नमाज़ हो जाएंगे।
मस्अला।। :- मर्द के जिस्म का जो हिस्सा शरीअत में औरत है, उस हिस्सा को 8 हिस्सों में बांटा गया है, और हर हिस्सा को अलग-अलग parts में शुमार count किया जाएगा, और उनमें से किसी एक हिस्सा की चौधाई जितना हिस्सा खुल गया तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएंगी।।