तहारत संबंध से जरूरी बातें,[मस्अला]
मस्अला
जिस जगह नमाज पढ़ना हो उसके पाक होने का मतलब यह है क़दम (पाव)रखने की जगह और सजदा करने की जगह का पार्क होना है।यानी सजदा करते वक्त बदन के जो हिस्से ज़मीन से लगते हैं, उन हिस्सों के जमीन से लगने की जगह का पाक होना है।।
(दुर्रे-मुख़्तार, बहारे-शरीअ़त)
मस्अला
नमाज़ पढ़ने वाले के एक पांव के नीचे दिरहम की मात्रा से अधिक नजासत (नापाकी) है, तो नमाज़ न होगी। ऐसे ही दोनों पांव के नीचे थोड़ी-थोड़ी नजासत है, कि उसे जमा(इकट्ठा करने पर) करने पर एक दिरहम की मात्रा हो जाएगी तो भी नमाज़ न होगी।।
( दुर्रे-मुख़्तार)
मस्अला
पेशानी (Forehead) पाक जगह पर है, और 👃 नाक नजिस जिस जगह पर है, तो नमाज़ हो जाएगी। क्योंकि नाक दिरहम की मात्रा से कम जगह पर लगती है, बिना ज़रूरत और मजबूरी यह भी मकरू (नापसंद)है।।
[रद्दुल-मोहतार]
मस्अला
अगर सजदा करते समय कुर्ता,कमीज़,कपड़ा दामन वगै़रा नजिस जगह पर पढ़ते हो तो हर्ज नहींं, नमाज़ हो जाएगी।।
[रद्दुल-मोहतार]
मस्अला
अगर नजिस जगह पर इतना पतला कपड़ा बिछाकर नमाज़ पढ़ी, कि वह कपड़ा स्तर [छुपाने की जगह]के काम नहीं आ सकता, यानी उसके नीचे की चीज़ झलकती हो, तो नमाज न हुई। और अगर शीशा पर नमाज़ पढ़ी, और उसके नीचे नजासत है, अगरचे वह नापाक चीज़ दिखाई देती हो, तो भी नमाज़ हो जाएगी।।
[रद्दुल-मोहतार]
मस्अला
अगर मोटा कपड़ा नजिस जगह पर बिछाकर नमाज पढ़ी, और नजासत खुश्क (सूखा) है कि कपड़े में नहीं लगेगी।और नजासत की रंगत और बदबू महसूस नहीं होती तो नमाज़ हो जाएगी, कि यह कपड़ा नजासत और नमाज़ी के दरमियान फासिल हो जाएगा। (यानी यह कपड़ा नापाकी चीज़ और नमाज़ी के बीच में दूरी बनाकर रखेगा)।।
[बहारे शरीअत]
नोट :- अगर पाक साफ जगह मिल जाए, तो नापाक जगह पर कपड़ा बिछाकर नमाज़ न पढ़े। ऊपर जो बातें बताई गई, वह सिर्फ मजबूरी की सूरत में हैं।।
।।सतर-ए-औरत के ताल्लुक से कुछ अहम मसाईल।।
मस्अला।। सतरे औरत हर हाल में वाजिब है। चाहे नमाज में हो या नमाज से बाहर, हर वक्त सतर-ए-औरत वाजिब है ।चाहे अकेला रूम में क्यों ना हो। किसी के सामने बिना सही जरूरत के, अकेले में भी सतर-ए-औरत खोल कर रखना जायज नहीं।।
[दर्रे-मुख़्तार, रद्दुल-मोहतार]
मस्अला।। :- अगर कोई शख्स इतना पतला कपड़ा कि जिससे बदन चमकता /झलकता हो। तो वह कपड़ा सतर-ए-औरत के लिए काफी नहीं। उस कपड़े को अगर पहनकर नमाज पढ़ी जाए तो नहीं होगी।
[आलमगीरी, फतवा-ए-राज़्विया जिल्द न:३,पेज़१ ]
मस्अला।। :- मर्द के लिए नाभि के नीचे से घुटनों के नीचे तक का बदन औरत है। यानी उसको छुपाना फर्ज है। नाभि छुपाने की जगह मैं दाखिल नहीं और घुटने उस में दाखिल हैं।
[दर्रे-मुख़्तार, रद्दुल-मोहतार]
मस्अला।। :- औरत के लिए सारा बदन औरत है। यानी उसको छुपाना फर्ज है, लेकिन मुंह यानी चेहरा, दोनों हाथों की हथेलियां, और दोनों पांव के तलवे औरत नहीं यानी नमाज़ की हालत में औरत का चेहरा ,दोनों हथेलियां और दोनों तलवे खुले होंगे तो नमाज़ हो जाएंगे।
मस्अला।। :- मर्द के जिस्म का जो हिस्सा शरीअत में औरत है, उस हिस्सा को 8 हिस्सों में बांटा गया है, और हर हिस्सा को अलग-अलग parts में शुमार count किया जाएगा, और उनमें से किसी एक हिस्सा की चौधाई जितना हिस्सा खुल गया तो नमाज़ फ़ासिद हो जाएंगी।।
मस्अला :-
मस्अला :- इसिक़बा-ए-क़िबला यानी नमाज़ में क़िबला (खा़ना ए काबा) की तरफ चेहरा करना।
मस्अला :- अगर नमाज़ी का चेहरा काबा की तरफ से थोड़ा हटा हुआ है, लेकिन उसके चेहरे का कोई हिस्सा क़ाबा की तरफ है तो उसके नमाज हो जाएगी। और इसकी मीक़्दार 45 डिग्री रखी गई है। यानी 45 दर्जा से कम उनके चेहरे का कोई हिस्सा किबला की तरफ से दूसरी जानिब हो, तो नमाज़ हो जाएगी। और अगर 45 डिग्री से ज़्यादा है तो नमाज़ ना होगी। ।।फ़त्वा-ए-रीज़विया।।
मस्अला :- अगर कोई शख़्स ऐसी जगह पर है कि जहां किबला (पश्चिम) की दिशा पता ना चलता हो, ना वहां कोई ऐसा मुसलमान है जो उसे सिमत बतादे, ना वहां मस्जिदें मेहराबें हैं, ना चांद सूरज सितारे निकले हों, या निकले हैं मगर उसको इतना इल्म नहीं कि उनसे मालूम कर सके, तो ऐसे शख़्स के लिए हुक्म में है कि सोचे ग़ौर वह पीकर करे और जिधर कि़बला मालूम हो, उधर ही मुंह करके नमाज़ पढ़े, इस के ह़क़म में वही क़िब्ला है। ।। बहारे शरीयत।।
मस्अला :- अगर कोई शख़्स सोचने के बाद किबला मालूम किया और उधर ही नमाज़ पढ़ ली, नमाज़ पढ़ने के बाद मालूम हुआ कि क़िब्लाबला की तरफ नमाज़ नहीं पढ़ी थी, तो अब दोबारा पढ़ने की ज़रूरत नहीं है, नमाज़ हो गई। (फतवा-ए-रिज़विया)
मस्अला :- अगर वहां पर कोई शख़्स मौजूद था, जिससे पूछने पर पश्चिम की दिशा बता देता, लेकिन उससे बिना पूछे अपने आप आ ग़ौर-व-फ़िकर कर करके नमाज़ पढ़ ली, मुंह पश्चिम की तरफ है तो नमाज़ हो जाएगी, और अगर ना हो तो नमाज़ नहीं होगी।
मस्अला :- अगर कोई शख़्स नमाज़ की हालत में पश्चिम दिशा से बिना किसी कारण के जान-बूझकर अपना सेना फेर दिया दूसरी तरफ, अगरचे जल्दी से फिर पश्चिम की तरफ हो गया तो उसकी नमाज फांसिद हो गई, और अगर अनजान में फिर गया और तीन तस्बीह पढ़ने के वक्त की मिकदार [ यानी तीन बार सुब्हान रब्बिल आला पढ़ने के बराबर ] उसका सीना पश्चिम दिशा से दूसरी तरफ फेरा हुआ रहा तो भी उसकी नमाज फांसिद हो गई। ( यानी फिर से नमाज़ पढ़ नी होगी )
मस्अला :- अगर नमाज़ी पश्चिम दिशा से सीना नहीं फेरा, बल्कि सिर्फ अपना चेहरा फेरा, तो उस पर वाजिब है कि अपना चेहरा जल्दी से क़िब्ला की तरफ कर ले। इस सूरत में उसकी नमाज़ नहीं टूटेगी, बल्कि नमाज़ हो जाएगी, लेकिन बिना किसी कारण के ऐसा करना मकरूह है।