।। हज का बयान।।
इस्लाम में ईमान लाने के बाद जो चार इबादतें फ़र्ज़ हैं, उनमें से पहली इबादत तो नमाज़ है, दूसरी रोज़ा, तीसरी ज़कात, और चौथी इबादत हज है।
हज क्या चीज़ है ?।।
हज इस तरह होता है कि एह्राम बांधकर मक्का शरीफ के शहर में जाकर मस्जिदए हराम मैं काबा शरीफ के चारों तरफ फेरा लगाया जाता है। और उसी के करीब एक जगह और है जहां दौड़ लगाई जाती है। एक जगह और है जहां ठहरा जाता है। कु़र्बानी की जाती है, बाल मुंडवाया जाता है और भी कुछ बातें की जाती है जिनको हम आगे तफ्सील के साथ बताएंगे।
हज की फज़ीलत और कब फ़र्ज़ होता है ?।।
हज फ़र्ज़ है जो इसको ना माने वह काफ़िर है। सारी उम्र में हज एक बार फ़र्ज़ है। हज ना करने में सख़्त गुनाह है, यहांँ तक कि बेईमान हो कर मरने का डर है।
रसूलुल्ला सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम ने फ़रमाया कि हज करने से पहले जितने गुनाह हो चुके हैं, हज सब गुनाह को मिटा देता है। और फ़रमाया कि हज कमज़ोरों और औ़रतों केलिए जिहाद है। और हाजी की मग़्रफ़िरत हो जाती है, और हाजी जिसके लिए मग़्फ़िरत की दुआ करें उसकी भी मग़्फ़िरत जाती है। और मेरे नबी करीम सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फ़रमाया कि हाजी के हर क़दम पर 7 करोड़ नेकियाँ उसके नामे आमाल में लिख्दी जाती है। और फ़रमाया जो हज करने केलिए निकला और रास्ते में इंतिक़ाल होगया तो वह बेहिसाब जन्नत में जाएगा और क़यामत तक उसके लिए हज करने का सवाब लिखा जाएगा।
नोट : जब हज करने के लाइक हो जाए तो फौरन हज फ़र्ज़ हो जाता है। यानी उसी साल हज करना फ़र्ज़ हो गया और देरी करने में गुनाह है, और कई साल तक हज नहीं किया तो गुनाहगार होगा। और उसकी गवाही मक़बूल नहीं। लेकिन जब भी हज करेगा, अदा होजाएगा, हज कभी क़ज़ा नहीं होता है।
हज का वक़्त कब से कब तक है ?
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से शौव्वाल महीने से ज़िलहिज्जा की 10वीं तारीख तक है। इससे पहले हज के कार्यों को नहीं कर सकते। एह़्राम पहले बांध सकते हैं लेकिन मकरू है।
हज में क्या शर्त हैं ?।।
हज के लिए 8 शर्ते हैं, जब यह सब पाई जाए तब हज फ़र्ज़ होगा। वह 8 शर्तें यह हैं :-
1️⃣ मुसलमान होना।
2️⃣ बालिग़ हो ना।
3️⃣ अकलमंद हो ना।[पागलपन हद फ़र्ज़ नहीं]
4️⃣ आज़ाद होना।
5️⃣ तंदुरुस्त होना कि हज करने के लिए जा सके। (अपाहिज, अंधा, जिसके पाँव कटे हो, इतना बूढ़ा के सवारी पर खुद बैठ ना सकता हो तो ऐसे लोगों पर हज फ़र्ज़ नहीं)
मस्अला : पहले तंदुरूस्त था, और सब शर्तें भी पाई जाती थी लेकिन हज नहीं किया और बाद में अपाहिज वग़ैरा होगया, और अभी हज नहीं कर सकता, तो उसपर वह हज फ़र्ज़ बाक़ी हैं। वह ख़ुद से नहीं कर सकता तो हज्जे बदल करवालें।यानी अपने बदले दूसरे को हज केलिए भेज दें।
6️⃣ हज के सफ़र में ख़र्च होने वाले तमाम अख़रजात कामादिक होना। और सफ़र केलिए तैयार होना यानी सही सालिम, तन्दुरूस्त होना।[ इसका मतलब यह है कि हाजतेअस्लिया छोड़कर इतना माल हो कि सवारी पर मक्का मुअज़्ज़मा जासके और वहांँ से सवारी पर वापस आ सकें]
7️⃣ वक़्त यानी इतने दिन पहले यह सब शर्तें पाई जाए कि
हज इस्लाम धर्म की बुनियादी चीज़ों में से एक बुनियादी चीज़ है। हर साल मुसलमान हज करने के लिए सऊदी अरब जाते हैं, और मक्का मुकर्रमा की ज़ियारत करते हैं।
⬛🔸अल्लाह ताला कुरान में इरशाद फ़रमाता है। बेशक पहला घर जो मुसलमानों के लिए बनाया गया वह है जो मक्का शहर में है, बरकत और हिदायत वाला पूरी दुनिया के लिए है, उसमें खुली हुई निशानियां हैं, मक्कामे इब्राहिम और जो इस में दाखिल हो अमन के साथ है, और अल्लाह के लिए लोगों पर बैतुल्लाह का हज है, और जिस शख़्स में वहां पहुंचने की ताक़त हो।
⬛🔸दूसरी जगह पर अल्लाह ताला इरशाद फ़रमात है। [ह़ज और उमरा को पूरा करो अल्लाह ताला लिए]
हदीस नंबर 1: [सही मुस्लिम शरीफ में है] हजरते अबू हुरैरा रदी अल्लाहु ताला अन्हु से मर्वी है अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहो अलैही वसल्लम ने खुतबा पढ़ा और फरमाया। "ए लोगो ! तुम पर हज फर्ज किया गया, लिहाजा तुम लोग हज अदा करो" एक शख़्स ने अर्ज़ की, या रसूल अल्लाह क्या हर साल ? हमारे प्यारे आका नबी करीम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम खामोश रहे। वह शख्स इसी तरह तीन बार सवाल किया। नबी ने इरशाद फरमाया अगर मैं हांं कह देता तो तुम पर वाजिब हो जाता और तुम उसे पूरा नहीं कर पाता। फिर आगे नबी नेे फ़रमाया जब तक मैं किसी बात को बयान ना करूं तुम मुझसे सवाल ना करो। क्योंकि तुमसे पहले के लोग ज़्यादा सवाल करने और अंबिया की मुखालिफ़त करने की वजह से हलाक और बर्बाद हो गया। लिहाज़ा जब मैं किसी बात का हुक्म दूं जहांं तक हो सके उसे करो, और जिससे मना करूंं उसे छोड़ दो।
हदीस नंबर 2 :- बुखारी, मुस्लिम शरीफ तिर्मीजी़ और इब्ने माजा से रावी है। रसूले करीम सल्लल्लाहु अलेही वसल्लम फ़र्माते है, जिसने हज किया, और बुरी बातों से बचा, और फ़िस्क ना किया, तो गुनाहों से ऐसा पाक हो गया जैसा कि माँ के पेट से अभी जाना हो।
एक बार हजरत ए आयशा सिद्दीका रेदीयल्लाहू अन्हा नबी की बारगाह में अर्ज़ की, या रसूल अल्लाह औरतों पर जिहाद है ? तो नबी ने फ़रमाया हांँ" उनके जिम्मा वह जिहाद है जिसमें लड़ना नहीं हज और उमरा है।
हदीस नंबर 3 :- [तिर्मीजी शरीफ] रसूल अल्लाह सल्लल्लाहो अलेही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं, हज और उमरा मोहताज और गुनाहों को ऐसे दूर करते हैं जैसे भट्टी लोहे और चांदी से मैल को दूर करती है। और हज्जे मबरूर का सवाब जन्नत ही है।