Namaz ka Mukammal Bayan.
।।नमाज की शर्तों का बयान।।
बच्चों को नमाज़ पढ़ने का हुक्म।
बच्चों को किस उम्र से नमाज़ पढ़ने की आदत लगानी चाहिए। जानने के लिए आखिर तक जरूर पढ़ें। इस्लाम की बड़ी-बड़ी किताबों में है कि बच्चे जब 7 साल के हो जाए तो उसको नमाज़ पढ़ना बताया जाए। और बचपन ही से बच्चों को अपने साथ मस्जिद ले जाए, ताकि नमाज़ पढ़ना सीख जाए। और जब 10 साल का हो जाए, तो नमाज़ की ताकीद करें और सख़्ती के साथ नमाज़ पढ़ने का हुक्म दे। और अगर नमाज़ ना पढ़ें तो मार कर नमाज़ पढ़ने का हुक्म दे।
- Assalamu Alaikum
Dosto Is post me only sharait-e-namaz ko bayan kiya gaya hai. Janne keliye end tak zaroor padhe. aur apne dosto ko bhi share kare
इस्लाम की 5 बुनियादी चीजों में से एक चीज नमाज भी है। इस पोस्ट के अंदर नमाज के मुतालिक तमाम चीजों को सरल अंदाज में आप लोगों तक पहुंचाने की कोशिश कर रहा हूं। और दुआ करें कि अल्लाह तबारक व ताला मुझे इन कामों में सबर-व-इस्तिक़ामत के साथ हर दिन नई नई पोस्ट लिखने की तौफीक दे।।
।।नमाज़ की शर्तों का बयान।।
शराइत-ए-नमाज का मतलब यह है। कि जिस के बगैर नमाज शुरू हो ही नहीं सकती। जब तक आप नमाज की शर्तों को मुकम्मल नहीं करेंगे। उस वक्त तक आप नमाज शुरु नहीं कर सकते।
नमाज़ की कुल 6 शर्तें हैं । तहारत। सतरेऔरत। इस्तिक़बाले क़िब्ला। वक्त [समय]। नियत। तकबीरे तसलीमा।। इन शर्तों को नमाज़ शुरू करने से पहले मुकम्मल करना होगा। तब ही आप की नमाज शुरू हो सकती है।। निम्नलिखित में इन इन शर्तों की परिभाषा को लिखा गया है।
नमाज़ की पहली [1] शर्त :-ताहारत।।
🔘 नमाज़ी के बदन, कपड़े और उस जगह का पारक होना।जहां पर वह नमाज़ पढ़े।
🔘 नमाज़ीका बदन हदस-ए-अकबर से पाक होना।[ यानी जनाबत हैज़ वगैरा से पाक होने के लिए नहाना वाजिब ना हो]
🔘 नमाज़ी का बदन हदस-ए-असग़र से भी पाक हो।[ यानी बगैर वजू के ना हो ]
🔘 नमाज़ी का बदन नजासत-ए-ग़लीज़ा और खफीफा से पाक होना, हुक्म के अनुसार। [ यानी नजासत-ए-ग़लीज़ा(भारी नजासत) एक दिरहम की मिक़दार से ज़्यादा लगी हुई ना हो। और नजासत-ए-ख़फीफा (हल्की नजासत) कपड़ा या बदन के जिस हिस्सा पर लगी हो उस हिस्सा की चौथाई से ज़्यादा लगी हुई ना हो ]
🔘 जिस जगह पर नमाज पढ़ना हो उस जगह का पाक होना।
।। नमाज़ की दूसरी [2] शर्त :- सतर-ए-औरत।।
प्यारे दोस्तों ! पहले हम सतर-ए-औरत के माना और मतलब को जानते हैं । यह अरबी शब्द है, जो दो शब्दों से मिलकर बना है। एक सतर और दूसरा औरत है। [सतर का मतलब छुपाना है और औरत का मतलब मर्द और औरत के बदन का वह हिस्सा जिसको खोलना हराम उसको छुपाना लाज़मी है.] तो अब इसका परिभाषा हुआ। मर्द को नाभि उसके नीचे से घुटनों तक छुपाना पर्दा करना मर्द के लिए सतर-ए-औरत है। और औरत को चेहरा हथेली और कदम के इलावा पूरा बदन छुपाना। सतर-ए-औरत है, लड़कियों के लिए।
।।हदीस।।
हुजूर अकरम सल्लल्लाहू अलेही वसल्लम इरशाद फरमाते हैं। औरत छुपाने की चीज़ है। क्योंकि जब-जब वह घर से बाहर निकलती है। शैतान उसकी तरफ झांकता है।।
सतर-ए-औरत के बारे में ज़्यादा जानने के लिए नीचे Click करें।।
नमाज़ की तीसरी [3] शर्त :- इसतिक़्बाले क़िब्ला।।
इसका आसान परिभाषा है, कि नमाज़ में चेहरा को पश्चिम की तरफ करके खड़ा होना।।
अगर आपको पश्चिम(क़िब्ला) की दिशा में शक हो, और पता ना चले कि पश्चिम किधर है। तो किसी दूसरे व्यक्ति से पूछ ले। अगर कोई व्यक्ति वहां पर मौजूद ना हो। तो खुद से गौर-व-फ़िकर करें, सोचने के बाद जिधर आपको पश्चिम दिशा मालूम लगे। उसी तरफ़ मुंह करके नमाज़ पढ़ ले। फिर अगर नमाज़ के बाद मालूम हुआ, कि पश्चिम दूसरी तरफ़ था, तो कोई हर्ज़ की बात नहीं है नमाज हो जाएगी।।
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नमाज़ की चौथी [4] शर्त :-वक़्त (समय)।।
जिस वक़्त की नमाज़ पढ़ी जाए, उस नमाज़ का वक़्त हो ना। यानी जिस नमाज़ के लिए जो वक़्त मुकर्रर है उसी वक़्त के अंदर नमाज़ पढ़ी जाए।।
।।औकात ए नमाज़।।
🔶 वक़्ते फ़जर ।। तुलू-ए-फ़जर (सुबह सादिक़) से तुलू-ए-आफ़ताब तक है।।🔸 सूरज की लाली निकलने से पहले पूरब दिशा में एक सफेदी नज़र आती है। उसी को सुबह सादीक़ कहते हैं। 🔸 और सूरज की लाली के निकलने को तुलू-ए-आफ़ब कहते हैं। तो मालूम हुआ कि वक़्ते फ़जर, पूरब दिशा में सफेदी के निकलने से लेकर सूरज की लाली निकलने तक, फ़जर का वक़्त है। क्ष््््द्
⏲️ वक़्ते जो़हर ।।
दोपहर को आधा दिन गुज़रने के बाद सूरज ढलने पर वक़्ते जो़हर शुरू होता है। और उस वक़्त तक रहता है जब तक के हर चीज का साया असली साया को छोड़कर दोसा या ना हो जाए। यानी हर चीज का तीन साया हो जाए।।
।। वक़्ते असर।।
जो़हर का वक़्त ख़त्म होते ही असर का वक़्त शुरू हो जाता है। और सूरज के डूबने तक रहता है।
।। वक़्ते मग़रीब ।।
सूरज डूबते ही मग़रीब का समय शुरू हो जाता है। ।।।।और गुरु बेशक अब तक रहता है।
⏲️वक़्ते इशा ।।
मग़रीब का वक़्त खत्म होने से लेकर फ़जर का वक़्त शुरू होने से पहले तक ईशा का समय होता है।
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।। नमाज़ की पांचवी [5] शर्त :- नियत।।
🔶 जिस वक़्त की जो नमाज़ पढ़े। उसकी नियत होनी चाहिए। और नियत दिल के पक्के इरादे को कहते हैं। जु़बान से नियत के शब्द को बोलना मुस्तहब है। इसमें कोई भाषा मुकर्रर नहीं है। चाहे आप उर्दू में नियत करें या फारसी, अरबी, इंग्लिश हिंदी आपको किसी भाषा में नियत करसकते हैं। इसमें कोई हर्ज नहीं है। लेकिन अरबी भाषा में नियत और भाषाओं से ज्यादा अच्छा है।।
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।। नमाज़ की छ्ठी [6] शर्त :- तकबीरे तेह़रीमा ।।
🔸अल्लाह हू अकबर कहकर नमाज़ शुरू करना। यानी नमाज़ के शुरू में अल्लाहू अकबर कहना शर्त है।
🔸नमाज़े जनाजा़ में तकबीरे तह़रीमा रुकन है, बाकी़ नमाजो़ में शर्त है।।
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ReplyDeleteMasha Allah
ReplyDeleteThis post is nice